Thursday 29 September 2011

मिटने वाली रात नहीं.

दीपक की है क्या बिसात, सूरज  के वश की बात नहीं,
चलते-चलते  थके  सूर्य,  पर  मिटने  वाली  रात  नहीं।

चारों ओर  निशा का शासन,
सूरज भी  निस्तेज  हो गया।
कल तक जो  पहरा  देता था,
आज वही  चुपचाप सो गया।
सूरज  भी   दे  दे  उजियारा, ऐसे  अब   हालात  नहीं,
चलते-चलते  थके  सूर्य,  पर  मिटने  वाली  रात  नहीं।

इन कजरारी काली रातों में,
चंद्र-किरण भी लुप्त हो गई।
भोली-भाली  गौर  वर्ण थी,
वह रजनी भी ब्लैक हो गई।
सब  सुनते  हैं, सहते  सब,  करता  कोई  आघात  नहीं,
चलते-चलते  थके  सूर्य,  पर  मिटने  वाली  रात  नहीं।

सूरज  तो  बस  एक चना है,
तम का शासन बहुत घना है।
किरण-पुंज  भी  नजरबंद  है,
आँख  खोलना  सख्त मना है।
किरण-पुंज  को मुक्त  करा  दे, है  कोई  नभ-जात नहीं,
चलते-चलते  थके  सूर्य,  पर  मिटने  वाली  रात  नहीं।

हर  दिन    सूरज   आये  जाये,
पहरा  चंदा  हर  रोज लगाये।
तम  का  मुँह काला  करने  को,
हर शाम दिवाली दिया जलाये।
तम भी नहीं  किसी से कम है, खायेगा  वह  मात नहीं, 
चलते-चलते  थके  सूर्य,  पर  मिटने  वाली  रात  नहीं।

ढ़ह सकता है कहर तिमिर का,
नर-तन यदि मानव बन जाये।
हो  सकता  है  भोर   सुनहरा,
मन का दीपक यदि जल जाये।
तम  के  मन में  दिया जले, तब  होने  वाली  रात नहीं,
चलते-चलते  थके  सूर्य,  पर  मिटने  वाली  रात  नहीं।
 -आनन्द विश्वास


Sunday 25 September 2011

"मैं कैसे तुमसे प्यार करूँ"

तुम्हीं बताओ  कीट सखेमैं  कैसे   तुमसे  प्यार  करूँ।
जब  जल  कर करता  उजियारा,
तब   तुम     प्रीति   दिखाते  हो।
सच्चा   प्रेम   अगर  तुम   करते,
तो  बुझने पर क्यों  ना आते  हो।
मत समझो मैं पागल तुम सा,जो हर राही से प्यार करूँ.
तुम्हीं  बताओ कीट सखेमैं  कैसे   तुमसे   प्यार  करूँ।

तुम  मस्त  मरिंदे   सम  ठहरे,
जो डोला करते फूल-फूल पर।
खा कर  के सौगंध  कहो  तुम,
ना  डोला करते दीप-दीप पर।
तुम  मतलब  के मीत  सखेरिश्ता कैसे स्वीकार  करूँ,
तुम्हीं  बताओ कीट सखेमैं  कैसे   तुमसे  प्यार  करूँ।

जब   चंदा    करता   उजियारा,
तब    चकोर     ललचाता   है।
क्या दिन   में  भी कहीं  चकोर,
ऊपर   को   आस   लगाता है।
वे सोचे समझे क्यूँ  तुमसे,कुछ सांसों का व्यापार  करूँ,
तुम्हीं  बताओ कीट  सखेमैं   कैसे  तुमसे  प्यार करूँ।

तेल   है    मेरा   जीवन    साथी,
जो  जलता है मुझे जिलाने को।
माना    तुम    भी    जल  जाते,
अपनापन   मुझे   दिखाने  को।
बिना तेल अस्तित्वहीन मैं,किस ओर थिरकते पाँव धरूँ,
तुम्हीं   बताओ  कीट  सखेमैं  कैसे तुमसे प्यार करूँ।
-आनन्द   विश्वास

Wednesday 21 September 2011

जीवन जीना एक कला है


जीवन जीना एक कला है

जीवन   जीना   एक   कला   है,
मन  उजला  तो, जग उजला है।
इस  जीवन  में  कदम-कदम पर,
मन  की   रोज   परीक्षा   होती।
लेखा - जोखा   होता  पल - पल,
जिसकी    रोज   समीक्षा  होती।
निर्मल  मन  हो, निर्मल  तन हो,
निर्मल  धन  हो, जो  भी   आये।
जीवन  अपना  धन्य  समझ  लो,
जीवन  यदि   निर्मल  हो  जाये।
करो   समर्पित  जीवन   अपना,
जो  भी  तुमको  काम  मिला है।
संयम,   निष्ठाशुद्ध - कर्म   ही, 
जीवन   की  आधार - शिला  है।
जो   तुम  दोगेवही   मिलेगा,
सुख  दोगे   तोसुख   पाओगे।
बात   बहुत  सीधी  हैलेकिन,
क्या  तुम   इसे   समझ पाओगे।
यह   जीवन  अनमोल  रतन  है,
एक   बार   मुश्किल  से   पाया।
दिव्य - शक्ति  के  हो  जाओ तुम,
छोड़ो   जग   की  मिथ्या-माया।
अन्तहीन       इच्छायें      होतीं, 
कब  तक  इसका  भ्रम  पालोगे।
मन  की   चंचल  चाल  निराली,
क्या   तुम   इसे  पकड़   पाओगे।
वशीभूत   मन    के   मत   होना,
कहती   यह   भगवत   गीता  है।
निज   विवेक  सद-बुध्दि जगाओ,
मन   जीता   तो   जग  जीता  है।
मानव - तन   मन्दिर  है   पावन,
मन - वीणा   झंकृत   कर  डालो।
रोम - रोम  पुलकित   हो   जाये,
दिव्य - प्रेम  की ज्योति जगा लो।
ढाई   गज  का  वस्त्र  पहन   कर,
ढाई   किलो   की   राख   बनेगा।
ढाई   आखर   प्रेम   में   रम  जा, 
मानव   तन  कब   और  मिलेगा।

                                      ....
आनन्द विश्वास  

                                                     

Friday 16 September 2011

मेरे देश की माटी सोना

मेरे देश की माटी सोना

मेरे  देश  की  माटी  सोना, सोने का  कोई काम ना,
जागो   भैया   भारतवासी,  मेरी   है   ये   कामना।
दिन तो  दिन है  रातों को  भी थोड़ा-थोड़ा जागना,
माता  के  आँचल  पर  भैया,  आने  पावे  आँच  ना।

अमर धरा के  वीर सपूतो, भारत माँ  की  शान तुम,
माता  के  नयनों  के  तारे  सपनों  के  अरमान  तुम।
तुम  हो  वीर शिवा  के वंशज  आजादी  के  गान हो,
पौरुष की  हो खान  अरे तुम हनुमत से अनजान हो।

तुमको  है  आशीष  राम  का, रावण  पास  न  आये,
अमर  प्रेम  हो उर  में इतना, भागे  भय से  वासना।
मेरे  देश  की  माटी  सोना, सोने का  कोई काम ना।

आज देश का  वैभव रोता, मरु के नयनों  में पानी है,
मानवता रोती है दर-दर, उसकी भी यही कहानी है।
उठ कर गले लगा लो तुम, विश्वास स्वयं ही सम्हलेगा,
तुम बदलो  भूगोल जरा, इतिहास  स्वयं ही बदलेगा।

आड़ी-तिरछी   मेंट  लकीरें,   नक्शा   साफ   बनाओ,
एक  देश हो, एक  वेश हो, धरती  कभी  न  बाँटना।
मेरे  देश  की  माटी  सोना,  सोने का  कोई काम ना।

गैरों का  कंचन  माटी  है, मेरे  देश  की  माटी सोना,
माटी  मिल   जाती  माटी  में,  रह  जाता  है  रोना।
माटी की खातिर मर मिटना माँगों को सूनी कर देना,
आँसू  पी-पी  सीखा  हमने,  बीज  शान्ति  के  बोना।

कौन  रहा  धरती  पर  भैया, किस  के  साथ  गई  है,
दो  पल  का  है रैन बसेरा, फिर  हम सबको भागना।
मेरे  देश  की  माटी  सोना,  सोने का  कोई काम ना।

हम धरती  के लाल  और यह हम सब  का आवास है,
हम सब की हरियाली घरती, हम सब का आकाश है।
क्या हिन्दू, क्या  रूसी चीनी, क्या  इंग्लिश अफगान,
एक  खून  है सब का  भैया, एक  सभी  की  साँस  है।

उर को  बना  विशाल, प्रेम  का  पावन  दीप जलाओ,
सीमाओं  को बना  असीमित,  अन्तःकरण  सँवारना।
मेरे  देश  की माटी  सोना, सोने  का  कोई  काम ना।
जागो   भैया    भारतवासी,  मेरी   है   ये   कामना।

                                        ...आनन्द विश्वास